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बुधवार, 20 अगस्त 2025

श्रधांजलि : लेफ्टिनेंट भारती आशा सेन सहाय, सदस्य रानी झाँसी ब्रिगेड, आजाद हिन्द फौज

 

विद्या भूषण रावत 


नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय उपमहाद्वीप के सबसे प्रतिष्ठित नायको  में से एक हैं। आज भी, उनके साहसिक और देशभक्ति से भरे किस्से सुनकर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। हालांकि, भारतीय राजनीतिक वर्ग ने उनके विचारों और उद्देश्यों के विषय में हमेशा भ्रम की स्थिति रखी  जिसके परिणामस्वरूप दक्षिणपंथी 'कथावाचकों' द्वारा उनके विचारों को अपने पक्ष में करने की कोशिश की गई है। नेताजी भाररतीय स्वतंत्रता संग्राम के सबसे जीवंत पक्ष की और इशारा करते हैं लेकिन उनके जापान और जर्मनी जाने के फलस्वरूप 'उदारवादी' ओर 'वामपंथी' दोनों ही किस्म के इतिहासकारों ने उनके संघर्ष को इतिहास के पन्नो से गायब करने की कोशिश की है. आज इतने वर्षो बाद लोगो के केवल उनके बलिदान को याद करने को कहा जाता है लेकिन उनके जीवन मूल्यों को गायब कर दिया गया है. खैर, इन प्रश्नों पर मै कभी विस्तार पूर्वक बात रखूंगा लेकिन इस समय तो केवल लेफ्टिनेंट आशा सहाय चोधरी  और उनकी वार डायरी को याद करने का है. आशा जी का गत १३ अगस्त २०२५ को पटना के एक निजी अस्पताल में निधन हो गया. वह ९७ वर्ष की थी. 

आशा जी को हम 'नेताजी के एक अनुयायी और रानी झांसी रेजिमेंट की सदस्य  के रूप में जानते हैं और अधिकांश लोगो को वह आशा सान या लेफ्टिनेंट भारती आशा सहाय के  नाम से जाना जाता है. बात यह नहीं थी की उन्होंने १५ वर्ष की आयु में नेताजी से मिलकर आज़ाद हिन्द फौज में शामिल होने की इच्छा ब्यक्त की अपितु १९४३ से १९४७ के मध्य यानी जिस दौर में नेताजी जापान में थे और अपने जीवन और हमारे इतिहास के सबसे महत्वपूर्ण कालखंड में थे, उसके महत्वपूर्ण पालो को हर रोज एक डायरी के तौर पर आशा जी ने लिखा और सहेज कर रखा.  आशा जी पटना में रहती थीं  मैं उनसे मिलना चाहता था, लेकिन मुझे कभी नहीं पता था कि वे पटना में रह रही थीं और अभी जीवित थीं। फिर भी, मैं उन्हें उनकी युद्ध डायरी 'द वॉर डायरी ऑफ आशा-सान' के माध्यम से याद करता हूँ, जो 2022 में हार्पर कॉलिन्स द्वारा प्रकाशित की गई थी और इसका  अंग्रेजी अनुवाद तन्वी श्रीवास्तव ने किया था। ये डायरी बेहद महत्वपूर्ण है जो नेताजी के अंतिम दिनों और जापान के सरेंडर के बाद वहा मौजूद हालातो की जानकारी देता है. 

आशा सान की युद्ध डायरी वास्तव में नेताजी के अंतिम दिनों के बारे में रहस्य बनाए रखने वालों और जवाहरलाल नेहरू द्वारा उनके करीबी लोगों के साथ किए गए व्यवहार के बारे में कई बातें उजागर करती है। सबसे आकर्षक हिस्सा 1945 में जापान के आत्मसमर्पण के तुरंत बाद की स्थिति और नेताजी के निधन की खबर का जीवंत वर्णन है, जिसे आज तक जनता ने स्वीकार नहीं किया है, हालांकि नेताजी के  परिवार के अधिकांश लोगो ने 18 अगस्त, 1945 को उनकी 'गायब होने' की तारीख  को ही उनके निधन के रूप में स्वीकार कर लिया है जिसमे उनके पुत्री अनीता बोस फाफ भी शामिल है.  यह युद्ध डायरी वास्तव में 1943 से 1947 तक की अवधि को कवर करती है और इसमें उल्लिखित कई बातें  भारत के साहित्य और इतिहास के क्षेत्र को लोगो में अनजानी ही रही है. आश्चर्य की बात यह है की नेताजी की मृत्यु को रहस्यात्मक बनाने में सरकार और राजनीतिज्ञों का बहुत बड़ा योगदान है लेकिन अब इस बात से पर्दा हटाकर उनकी पवित्र रख को जापान से भारत लाने की बात करनी चाहिए. 

आशा जी की डायरी के अनुसार, उन्होंने 23 अगस्त, 1945 की सुबह नेताजी की मृत्यु की खबर सुनी, लेकिन उन्होंने इस पर विश्वास नहीं किया। उनके अनुसार,  उन्होंने नेताजी  का 14 अगस्त को दिया गया भाषण सूना  था, जिसमें उन्होंने कहा था, "कॉमरेड, शोनन और अन्य जगहों पर अब तरह-तरह की अफवाहें फैल रही हैं, जिनमें से एक यह है कि युद्धविराम हो गया है। इनमें से अधिकांश अफवाहें या तो झूठी हैं या बहुत अतिशयोक्तिपूर्ण हैं।"

15 अगस्त, 1945 को नेताजी ने कहा, "हमारे देश की आजादी के लिए हमने कई बाधाओं का सामना किया है और आगे भी करते रहेंगे। हमारा संघर्ष इसलिए खत्म नहीं होता क्योंकि जापान ने सफेद झंडा उठा लिया है या परमाणु बम गिराए गए हैं। दिल्ली तक जाने के कई रास्ते हैं और हमें अपने कर्तव्य को कभी नहीं भूलना चाहिए। हमें देशभक्त के रूप में अपने कर्तव्य को दृढ़ता के साथ पूरा करना होगा।"

 फिरलेकिन धीरे धीरे आज़ाद हिन्द फौज और सरकार के सभी लोगो ने उनकी मृत्यु को स्वीकार कर लिया और उसकी जानकारी के विषय में आशा जी ने अपनी  डायरी में जीवंत रूप से वर्णन किया गया है कि कैसे लोगों ने उनके निधन की दुखद खबर को स्वीकार किया। दुखद बात यह है कि आज तक भारत सरकार ने नेताजी के निधन को स्वीकार नहीं किया है, भले ही उनके अधिकांश परिवारजनों ने 18 अगस्त, 1945 को विमान दुर्घटना की कहानी को स्वीकार कर लिया है।

 आशा  का जन्म  2 फ़रवरी 1928 में जापान के शहर कोबे में हुआ था। उनके पिता आनंद सहाय भागलपुर से थे और डॉ. राजेंद्र प्रसाद और महात्मा गांधी के साथ जुड़े हुए थे। बाद में वे जापान में रास बिहारी बोस के संपर्क में आए और इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के गठन में मदद की। इस प्रकार आनंद सहाय इंडियन इंडिपेंडेंस लीग के संस्थापक सचिव बने.  नेताजी सुभाष चंद्र बोस जापान पहुंचे, तो आनंद सहाय उनके करीबी हो गए और नेताजी द्वारा गठित आजाद हिंद की अस्थायी सरकार का हिस्सा बने। उनकी मां सती सेन सहाय देशबंधु चित्तरंजन दास की भतीजी थीं। अपने परिवार के सदस्यों की तरह आशा भी नेताजी से बहुत प्रभावित थी और आजाद हिन्द फौज का हिस्सा बनना चाहती थी लेकिन १५ वर्ष की आयु में नेताजी ने उन्हें आजाद हिन्द में शामिल करने के इनकार कर दिया और दो वर्ष इंतज़ार करने को कहा. फिर मै १९४५ में वह नेताजी से फिर से जापान में मिली तो उन्हें  आजाद हिंद फौज की रानी झांसी रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त हुआ था और तब से वह लेफ्टिनेंटभारती आशा सहाय के नाम से जानी जाने लगी. अपने जीवन के लगभग १९ वर्ष उन्होंने जापान में व्यतीत किये इसलिए उनकी मात्र भाषा जापानी ही थी हालाँकि वह हिंदी से भी अच्छे से वाकिफ थी क्योंकि आज़ाद हिन्द फौज की नीति भी हिन्दुस्तानी को आगे बढाने की थी.  

लेफ्टिनेंट आशा सेन सहाय ने एक प्रेरणादायक जीवन जिया और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि उन्होंने अपनी युद्ध डायरी के माध्यम से हमारे राष्ट्रीय इतिहास के एक अत्यंत महत्वपूर्ण अध्याय को, जो औपनिवेशिकता के खिलाफ हमारे संगर्ष का एक बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज है  जिसे अक्सर इतिहासकारों ने नजरंदाज किया है। हमें इतिहास को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखने की जरूरत है, न कि केवल अपनी स्थिर दृष्टि से जो सत्ताधारियो की अवसरवादिता के अनुसार हो. 

आजाद हिन्द सरकार और फौज के अधिकांश सदस्य जापान और सिंगापूर में गिरफ्तार किये जा चुके थे और बाद में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस और विशेषकर जवाहर लाल नेहरु के प्रयासों और हस्तक्षेप के बाद वे रिहा किये गए. इनमे से बहुत से लोगो को नेहरु ने विभिन्न पदों और मंत्रालयों में महत्वपूर्ण हिम्मेवारिया दी. इस पर कभी बाद में चर्चा करूंगा.

मुझे व्यक्तिगत रूप से लगता है कि नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आदर्शवाद को अपनाने से भारत को बहुत लाभ होगा। वे शानदार विचारों और राष्ट्र के प्रति गहरी निष्ठा के व्यक्ति थे। हमारे समय में कोई अन्य राजनीतिक हस्ती ऐसी नहीं थी, जिसने अपने द्वारा बनाई गई हर संरचना में इतनी विविधता को शामिल किया हो। नेताजी की आजाद हिंद सरकार वास्तव में विविधता की शक्ति को दर्शाती थी। उनका समाजवाद का दृष्टिकोण भी हम सभी के लिए महत्वपूर्ण बना हुआ है।

,लेफ्टिनेंट भारती आशा सेन सहाय   को हमारी विनम्र श्रीधांजलि.

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