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बुधवार, 17 सितंबर 2025

पेरियार और उत्तर भारत के साथ उनका संबंध

 

विद्या भूषण रावत 

 

हालांकि पेरियार दलित बहुजन कार्यकर्ताओं के बीच एक जाना-माना नाम है, लेकिन यह भी सच है कि उत्तर भारत के अधिकांश लोगों को पेरियार के विशाल कार्य और उनके आत्म-सम्मान आंदोलन की ताकत के बारे में बहुत कम जानकारी है। पेरियार के बारे में दो तरह की कहानियाँ प्रचलित हैं, जो या तो उनकी महिमा करती हैं या उनकी निंदा करती हैं। एक ओर, हिंदुत्व समर्थक उन्हें राम-विरोधी और हिंदी-विरोधी के रूप में दोषी ठहराते हैं और आरोप लगते है कि उन्होंने हमारे देवी देवताओं की मूर्तियों का अपमान किया और हमारी भाषा का विरोध किया। महत्वपूर्ण बात यह कि कई बहुजन बुद्धिजीवी उनके कार्यों को पूरी तरह जाने बिना धर्म के प्रश्न पर उनके उठाए सवालों को लेकर उनका महिमामंडन करते हैं। वे सभी पेरियार के द्रविड़ लोगों की चेतना को जागृत करने और सभी के लिए आत्म-सम्मान प्रदान करने में उनके ऐतिहासिक योगदान को, उनकी राजनीति और महिलाओ के प्रश्नों पर उनके विचारों को भी पूरी तरह से नहीं समझते। पेरियार को केवल चुटकुलों के तौर पर लिखी गई किताबों के जरिए आब ईमानदारी से नहीं समझ सकते। पेरियार का साहित्य सभी तमिल है और अब अंग्रेजी मे बहुत कुछ छप रहा है। उनके आंदोलनों को पृष्ठभूमि को समझे बिना उनको सही प्रकार से नहीं समझ सकते।

मुझे इस बात की हार्दिक प्रसन्नता है कि पिछले तीस वर्षों मे मै न केवल तमिलनाडु लगातार गया अपितु मुझे वहा के बहुत से बुद्धिजीवियों और आत्म सम्मान आंदोलन के लोगों से मिलने के अवसर मिले और जिसके बाद मै यह कह सकता हूँ कि मैंने पेरियार को ईमानदारी से समझने की कोशिश की है। इस संदर्भ मे मैंने लगातार लिखा भी और द्रविड आंदोलन के दो प्रमुख व्यक्तियों का मैंने विस्तृत बातचीत कर अपनी समझ को और बढ़ाया है। 






पेरियार का उत्तर भारत के साथ संपर्क 1904 में काशी की उनकी यात्रा से शुरू हुआ, जहाँ उन्हें स्थानीय पुजारियों द्वारा जातिगत भेदभाव के कारण अपमान का सामना करना पड़ा। लेकिन एक राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में पेरियार का औपचारिक संपर्क 1944 में कानपुर की यात्रा से शुरू हुआ, जब वे 29 दिसंबर से 31 दिसंबर, 1944 तक अखिल भारतीय पिछड़ा गैर-ब्राह्मण हिंदू सम्मेलन में भाग लेने गए थे। पेरियार को उत्तर भारत में हो रही गतिविधियों, विशेष रूप से बाबा साहेब आंबेडकर के नेतृत्व वाले आंदोलन की अच्छी जानकारी थी। बहुत कम लोग जानते हैं कि पेरियार ने बाबा साहेब की असाधारण कृति *जाति का विनाश* (*Annihilation of Caste*) का तमिल में अनुवाद किया था। श्री एस. वी. राजदुराई ने मेरे साथ अपनी शानदार बातचीत में पेरियार के उत्तर भारत से संबंधों के इन आश्चर्यजनक तथ्यों को सामने लाया, जो हाल ही में प्रकाशित पुस्तक *पेरियार: जाति, राष्ट्र और समाजवाद* में शामिल हैं। पेरियार 'जात-पात तोड़क मंडल' के उपाध्यक्ष भी थे, लेकिन उन्होंने जातिगत भेदभाव के कारणों पर अपनी स्थिति नहीं बदली, जो उनके अनुसार वर्ण व्यवस्था से उत्पन्न होते थे। इसके कारण पेरियार भी जात पात तोड़क मण्डल से अलग हो गए थे।  मैंने श्री राजदुराई के साथ पेरियार के उत्तर भारतीय जुड़ाव का मुद्दा उठाया था, और उन्होंने इन तथ्यों को लोगों तक पहुँचाने के लिए कड़ी मेहनत की। 

पेरियार 8 फरवरी, 1959 को रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) और उनके प्रशंसकों जैसे छेदी लाल साथी और अन्य के निमंत्रण पर कानपुर गए। पेरियार ने लखनऊ के गंगा प्रसाद मेमोरियल हॉल में आरपीआई कार्यकर्ताओं की एक विशाल सभा को संबोधित किया, जहाँ डॉ. छेदी लाल साथी ने उनके भाषण का अनुवाद किया। समाजवादी नेता राज नारायण ने भी उनके सम्मान में एक चाय पार्टी आयोजित की। पेरियार ने लखनऊ, कानपुर, दिल्ली, बंबई, कलकत्ता और पुणे में विभिन्न मंचों पर बोलना जारी रखा। उन्होंने बाबा साहेब आंबेडकर के निधन के बाद रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया को मजबूत करने की कोशिश की और उनके विभिन्न सभाओं को संबोधित किया। जो लोग पेरियार के खिलाफ बोलते हैं, उन्हें यह तथ्य जानना चाहिए कि पेरियार बाबा साहेब के दर्शन से अत्यधिक प्रभावित थे, उनकी प्रशंसा करते थे और उनके निधन के बाद उनके कार्य को बढ़ावा दिया। 

पेरियार ने केवल राजनीतिक सभाओं में ही नहीं बोला। उन्होंने लखनऊ विश्वविद्यालय में भी भाषण दिया, जहाँ शुरू में उनके खिलाफ प्रदर्शन हो रहे थे, लेकिन बाद में छात्रों ने सामाजिक न्याय, ओबीसी और दलित आरक्षण पर उनके विचारों को समझा और उनकी सराहना की। डॉ. के. वीरमणि ने 11 फरवरी, 1959 को लखनऊ विश्वविद्यालय परिसर में उनके भाषण का अनुवाद किया। पेरियार ने 25 फरवरी, 1959 को मुंबई में बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा स्थापित सिद्धार्थ कॉलेज में भी छात्रों को संबोधित किया। वे 1968 में फिर से लखनऊ आए।

सामाजिक आंदोलन 'अर्जक संघ'  के प्रमुख सदस्यों मे से एक  मानववादी तर्कवादी ललई सिंह यादव उत्तर भारत मे  पेरियार के सबसे उत्कृष्ट प्रशंसकों में से एक थे। । अर्जक संघ प्रबुद्धता, तर्कवादी सोच को बढ़ावा देता था और बहुजन समुदायों को कर्मकांडों और अंधविश्वासों के खिलाफ जागरूक करता था। ऐसे सभी विचारशील लोगों के लिए, पेरियार और बाबा साहेब आंबेडकर उनके नायक थे। ललई सिंह यादव ने पेरियार के रामायण पर कार्य का अनुवाद ‘सच्ची रामायण’ शीर्षक से किया। उत्तर प्रदेश सरकार ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया और 9 दिसंबर, 1969 को इसकी प्रतियाँ जब्त कर लीं। अर्जक संघ और ललई सिंह यादव ने इस घटना की निंदा की और 'लोगों की भावनाओं को ठेस पहुँचने के कारण कानून और व्यवस्था की समस्या' के बहाने सरकारी आदेश को इलाहाबाद उच्च न्यायालय में चुनौती दी, जिसने पुस्तक पर प्रतिबंध को अवैध घोषित कर दिया। उत्तर प्रदेश सरकार ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के इस आदेश के खिलाफ सर्वोच्च न्यायालय में अपील की। 16 सितंबर, 1976 को सर्वोच्च न्यायालय ने एक ऐतिहासिक फैसला सुनाया, जिसमें उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा और सरकार की समीक्षा याचिका को खारिज कर दिया। जस्टिस कृष्णा अय्यर, जस्टिस पी. एन. भगवती और जस्टिस सैयद मुर्तजा ने यह फैसला सुनाया। फैसला सुनाते हुए जस्टिस अय्यर ने कहा, 'एक सरकार हमेशा अपने समर्थकों की प्रशंसा से ज्यादा अपने विरोधियों की आलोचना से सीख सकती है। उस आलोचना को दबाना, कम से कम, अंततः अपने विनाश की तैयारी करना है।' 

सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला पेरियार के 97वें जन्मदिन की पूर्व संध्या पर तर्क और मानवतावाद के प्रतीक के लिए सबसे अच्छी श्रद्धांजलि थी। यह वह दौर था जब उत्तर प्रदेश और अन्य जगहों पर आरपीआई वस्तुतः राजनीतिक रूप से विलुप्त हो रही थी और विभिन्न गुटों में बँट गई थी, लेकिन अर्जक संघ मानवतावादी मूल्यों और सामाजिक परिवर्तन के लिए एकमात्र गैर-राजनीतिक आंदोलन था। इसने उत्तर प्रदेश में आम लोगों के बीच पेरियार के कार्य को फैलाने की विरासत को आगे बढ़ाया। चूंकि अर्जक संघ अंधविश्वास-विरोधी था इसलिए पेरियार का तर्कवाद और धर्म पर उनकी टिप्पणियों ने उन्हें प्रभावित किया। लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि अर्जक संघ के इर्द-गिर्द पेरियार की छवि मुख्य रूप से मूर्ति भंजक के रूप में बनाई गई। सामाजिक न्याय, महिलाओं की मुक्ति, आत्म-सम्मान विवाह, और समानुपातिक प्रतिनिधित्व जैसे उनके मुद्दे अभी भी राजनीतिक और सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं के बीच व्यापक रूप से प्रचलित नहीं हैं। हालांकि अर्जक संघ अभी भी कार्य कर रहा था, लेकिन रामस्वरूप वर्मा और ललई सिंह यादव जैसे नेताओं के निधन के बाद इसकी सक्रियता में कमी आई। 

1990 में जब वी. पी. सिंह प्रधानमंत्री थे और उन्होंने केंद्रीय सरकारी नौकरियों में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27% आरक्षण लागू करने को स्वीकार किया, तब उत्तर भारत में एक नया आंदोलन बन रहा था। आंबेडकर, फुले और पेरियार दलित बहुजन कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गए। आंबेडकरवादी पेरियार और उनके कार्यों के बारे में लिख रहे थे। इसके समानांतर बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) का उदय हुआ, जिसने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया के हाशिए पर जाने से उत्पन्न शून्य को भरा। उत्तर प्रदेश में आरपीआई के 'अवसान' ने 1980 के दशक में बीएसपी के विकास को जन्म दिया और 1993 में पार्टी ने समाजवादी पार्टी के साथ ऐतिहासिक गठबंधन किया और उत्तर प्रदेश में सत्ता में आई। 'मिले मुलायम कांशीराम: हवा हो गए जयश्रीराम' जैसे नारे इस बात का प्रतीक थे कि मुलायम और कांशीराम के एक होने पर जयश्रीराम का नारा बेकार हो जाएगा। उस समय बीएसपी उत्तर भारत में आंबेडकर और पेरियार के बारे में आक्रामक रूप से बोल रही थी। एसपी-बीएसपी गठबंधन नेताओं की महत्वाकांक्षाओं और विरोधाभासों के कारण टूट गया। बीएसपी ने उत्तर प्रदेश में बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई। यह एक बड़ा झटका था, लेकिन लोगों ने इसे तब तक स्वीकार किया जब तक उन्हें लगा कि उनके 'हित' खतरे में नहीं हैं। सत्ता में आने के बाद बीएसपी ने सबसे पहले दलित बहुजन प्रतीकों की बड़ी मूर्तियाँ स्थापित करने और लखनऊ शहर के केंद्र में 'पेरियार मेला' आयोजित करने की घोषणा की। लखनऊ में पेरियार मेला आयोजित करने की घोषणा ने गठबंधन सहयोगी बीजेपी को नाराज कर दिया और उन्होंने पेरियार को उत्तर-विरोधी और राम-विरोधी बताते हुए विरोध किया, और सरकार से समर्थन वापस लेने की धमकी दी। तब से बीएसपी अपने राजनीतिक कार्य में पेरियार की तस्वीर का उपयोग नहीं करती। शुरुआती चरणों में बीएसपी कार्यकर्ता पेरियार के बारे में बहुत बोलते थे, लेकिन बाद में राज्य की राजनीतिक वास्तविकताओं ने उन्हें पेरियार को पूरी तरह छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया। अब बीएसपी किसी भी तरह से पेरियार की स्मृति से जुड़ना नहीं चाहती। उत्तर भारत में अन्य पार्टियों, विशेष रूप से समाजवादी पार्टी, जनता दल या आरजेडी की स्थिति और भी गंभीर है, क्योंकि वे अपने समुदायों के वोट खोने का जोखिम नहीं उठा सकतीं, इसलिए वे पेरियार से बचती हैं। ये पार्टियाँ वास्तव में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया और जय प्रकाश नारायण से प्रेरित लोगों द्वारा बनाई गई थीं जो समय समय पर हिन्दुत्व के साथ समझौता कर चुकी थी और जिनके पास ब्राह्मणवादी संस्कृति का कोई विकल्प नहीं था जो अंबेडकर फुले और पेरियार ने दिया था। इसलिए उत्तर भारत मे पेरियार की बात राजनीतिक रूप से केवल आरपीआई या बीएसपी ने ही की । सामाजिक तौर पर उत्तर भारत मे अर्जक संघ'  और फिर बामसेफ ने और अन्य आंबेडकरवादी संस्थाओ और व्यक्तियों ने ही पेरियार को जन जन तक पहुंचाया। इसलिए यह बात स्पष्ट है कि उत्तर भारत में पेरियार को पिछड़े समुदायों ने न हीं पढ़ा या बढ़ावा दिया क्योंकि इसके लिए  'सामाजिक न्याय' की राजनीति का दावा करने वाली राजनीतिक पार्टियों की अवसरवादिता और विचारहीनता जिम्मेवार है। इसके अतिरिक्त ऐसे बुद्धिजीवी भी जिम्मेवार है जिन्होंने पेरियार का उपयोग केवल धर्म पर अपनी रसीली टिप्पणियों के लिए किया और उनके आत्म-सम्मान आंदोलन के विशाल कार्य को अनदेखा किया  जिसने द्रविड़ भूमि में पिछड़े समुदायों और दलितों को सत्ता संरचना में लाया। आंबेडकर, फुले और पेरियार क्रांतिकारी प्रतीक थे, जिन्होंने ब्राह्मणवादी वर्चस्व को चुनौती दी, जिसे अधिकांश राजनीतिक पार्टियाँ अभी भी चुनौती देने के लिए तैयार नहीं हैं, फिर भी सामाजिक आंदोलन, तर्कवादी, मानवतावादी कार्यकर्ता, बहुजन सामाजिक-सांस्कृतिक नेता पेरियार और तमिलनाडु में द्रविड़ जनता को सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से सशक्त करने के उनके विशाल कार्य से प्रेरित रहते हैं। 

श्री एस. वी. राजदुराई द्वारा पेरियार पर किया गया व्यापक कार्य सभी को  अवश्य पढ़ना चाहिए। पेरियार: जाति, राष्ट्र और समाजवाद: विद्या भूषण रावत के साथ एस. वी. राजदुराई की बातचीत’, नामक पुस्तक, जो पीपुल्स लिटरेचर पब्लिकेशन, मुंबई द्वारा प्रकाशित की गई है और अमेजन और फ्लिपकार्ट पर उपलब्ध है मे पेरियार के उत्तरभारत संपर्क, दलित छुआछूत, जातिवाद, भूमिसुधार, साम्यवाद, अंबेडकर, संविधान आदि प्रश्नों पर पेरियार के विचारों को व्यापक तौर पर प्रस्तुत किया गया है।  जो लोग पेरियार के उत्तर भारतीय जुड़ाव के साथ-साथ दलितों, अस्पृश्यता, भूमि प्रश्न और साम्यवाद पर उनकी समझ के कई अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में जानने के इच्छुक हैं, उन्हें इस पुस्तक में अत्यंत दुर्लभ और महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी। 

पेरियार सभी मानवतावादियों के दिल और दिमाग को प्रज्वलित करते हैं। उनकी प्रबुद्धता और तर्कवादी मानवतावादी विचारधारा की भावना हर जगह बढ़े।

पेरियार और उत्तर भारत के साथ उनका संबंध

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